Monday, March 26, 2012

निर्बल का बल / मैथिलीशरण गुप्त


निर्बल का बल राम है।
हृदय ! भय का क्या काम है।।

राम वही कि पतित-पावन जो
परम दया का धाम है,
इस भव – सागर से उद्धारक
तारक जिसका नाम है।
हृदय, भय का क्या काम है।।

तन-बल, मन-बल और किसी को
धन-बल से विश्राम है,
हमें जानकी – जीवन का बल
निशिदिन आठों याम है।
हृदय, भय का क्या काम है।।

No comments:

Post a Comment