Thursday, September 17, 2009

प्यार की जीत

छुटकी (ठाकुर साहब की बेहेन)

दुर्गा – नौकरानी

कैदी

ठाकुर साहेब

कोतवाल त्रिभुवन सिंह

छुटकी – दुर्गा ज़रा देखना तो दाल सीज गई है क्या?

दुर्गा – अभी नहीं सीजी है मालकिन

छुटकी – लेकिन इतनी देर में तो सीज जानी चाहिए थी. तुमने ठीक से गैस नहीं जलाई होगी

दुर्गा – लेकिन मालकिन गैस तो आपने जलाई थी

छुटकी – इस तरह से मेरे मुह पे जवाब मत दिया करो,बदतमीजी होती है

दुर्गा – जी मालकिन

छुटकी – इस चीज़ के लिए मुझे तुम्हे दोबारा न बोलना पड़े

दुर्गा – जी मालकिन

छुटकी – अरे देखो तो समय कितना हो गया घड़ी में…….अरे ग्यारह बज गए और भाई साहब का अभी तक कोई अता पता नहीं है. कहाँ रह गए, मुझे तो बहुत चिंता हो रही है

दुर्गा – जी मालकिन

छुटकी – तुमको ठाकुर साहब कुछ बोल कर गए थे क्या?

दुर्गा – नहीं मालकिन

छुटकी – क्या यह बोल कर गए थे की वोः कहाँ जा रहें है?

दुर्गा – जी हाँ मालकिन

छुटकी – (नक़ल करते हुए) “जी हाँ मालकिन” इतनी देर से मैं परेशान हुई जा रही हूँ और तुझे पता होते हुए भी मुँह सिलाई करके बैठी हुई थी, बताया क्यूँ नहीं?

दुर्गा – बताया इस लिए नहीं, क्यूँ की आप ने पुछा ही नहीं

छुटकी – यह भी कोई बात हुई भला, मैंने नहीं पुछा तो तुने इतनी ज़रूरी बात बतलाई नहीं, इतने देर से मैं परेशान हुई जा रही हूँ

दुर्गा – मालकिन ने सुबह मुझे ज्यादा बात करने से मना किया था इस लिए मैंने सोचा……………….

छुटकी – तुमने सोचा………………अब तुम सोचने भी लगी………सच में तू मुझे एक दिन पागल बना के छोडेगी

दुर्गा – जी मालकिन

छुटकी – यह तोते की तरह “जी मालकिन” “जी मालकिन” की रट मत लगा मेरे सामने

दुर्गा – जी मालकिन

छुटकी – ठाकुर साहब ने क्या कहा था तुमसे – कहाँ जाने के लिए बोल रहे थे?

दुर्गा – जी मेरी माँ के पास जाने को बोल रहे थे

छुटकी – तेरी माँ के पास…………………वोः किस लिए?

दुर्गा – सुबह ठाकुर साहब पूछने लगे की दुर्गा बेटी तुम्हारी माँ कैसी है, तो मैंने उन्हें बता दिया की कुछ दिनों से उन्हें बुखार हो गया है

छुटकी – तुमने मेरे भाई से कह दिया की तुम्हारी माँ बीमार है और तुम्हारी इस बेवकूफी के लिए मेरे बीमार भाई को बिना खाए पिए रात को ग्यारह बजे तक तुम्हारी माँ के आगे पीछे घूमना पड़ेगा. तुम लोगों के लिए वोः कितना करते हैं और तुम लोग उनके बारे में ज़रा भी नहीं सोचते.

दुर्गा – मालकिन दाल शायद जल रही है

छुटकी – अरे तो गैस बंद कर के उसे चम्मच से हिला दे, नहीं तो पूरी की पूरी जल जायेगी और जल गई तो अपने भाई को मैं क्या जली हुई दाल खिलाउंगी ……………अरे ऐसे नहीं………..हट जा मुझे चलाने दे…………और तू जा के वहां से नमक दानी निकाल ……वोः चांदी वाली………….

दुर्गा – चांदी वाली नमक दानी मालकिन?

छुटकी – हाँ हाँ चांदीवाली क्या तू अब बहरी भी हो गई है……

दुर्गा – लेकिन मालकिन…….वोः तो…. वोः तो बिक चुकी है

छुटकी – बिक चुकी है ……………बिक चुकी है…….क्या तू पागल हो गई है………किसने बेचा मेरी नमक दानी को……….और उसे बेचने की ज़रूरत भी क्या आन पड़ी

दुर्गा – दोपहर में ठाकुर साहब ने ही मुझ से कहा की बगल वाले बनिए की दूकान पे जा कर मैं नमक दानी को बेच आऊँ…………………..कई दिनों से उस बनिए की नज़र भी थी उस नमक दानी पे…………ठाकुर साहब यह भी बोले की जितने दाम भी मिल जाए उसी में बेच देना और पैसे उनके हाथ में दे देना…………

छुटकी – क्या भइया ने ऐसा कहा………………लेकिन तुम्हे किसने यह अधिकार दिया की मेरे घर की चीज़ बिना मेरे से पूछे तुम किसी को भी बेच आओ………………..

दुर्गा – लेकिन मालकिन ठाकुर साहब ने कहा था……………..

छुटकी – (नक़ल करते हुये ) – “ठाकुर साहब ने कहा था”………और ठाकुर साहब को पैसे की इतनी ज़रूरत क्या थी की उन्हें मेरी नमक दानी बेचनी पड़ी

दुर्गा – माफ़ करना मालकिन, लेकिन मेरे ख्याल से वोः पैसे उन्हें मिसेज़ शर्मा के लिए चाहिए थे, वोही मिसेज़ शर्मा जो पास वाले मकान में रहती हैं

छुटकी – मिसेज़ शर्मा , अरे मैं अच्छी तरह से जानती हूँ इस मिसेज़ शर्मा को , सारा दिन अपने कमरे में लेटी रहती है और कहती है उसकी बहुत तबियत ख़राब है, लेकिन असलियत तो यह है की वोः इतनी आलसी है की उस से कोई काम तो होता ही नहीं है , और इस मिसेज़ शर्मा को पैसे की क्या ज़रूरत थी भला…………….

दुर्गा – मालकिन, उसने ६ महीने से अपने घर का भाड़ा नहीं दिया था और मकान मालिक ने उसे घर खाली करने का नोटिस भी दे दिया था, बहुत परेशान थी बेचारी, इस लिए उन्होंने अपनी बेटी नेहा को ठाकुर साहब के पास भेजा – मदद के लिए – और फिर………..

छुटकी – हे भगवान मैं अपने इस भाई का क्या करुँ, इस तरह से तो अपनी इस हवेली में कुछ भी नहीं बचेगा. ठाकुर साहब की आधी से ज्यादा जायदाद तो इसी तरह से दूसरों की मदद के लिए उन्होंने बेच दी है, बचत तो कुछ करते नहीं है, घर के ज्यादातर फर्नीचर भी बिक चुके हैं. अगर मेरे पास कुछ बचत के पैसे नहीं होते तो हम लोगों को बिना खाए पिए ही रहना पड़ता. और अब मेरे दानवीर भाई ने चांदी की नमक दानी भी इस मिसेज़ शर्मा के लिए बेच दी…………..हे भगवान अब तुम्ही बताओ मैं इस घर को कैसे चलाऊँ…………………(जोर जोर से रोने लगतीहै)

दुर्गा – मालकिन, मुझे आप माफ़ कर दे, अगर मुझे पता होता तो मैं ऐसा कभी नहीं करती

छुटकी – तू मुझ से माफ़ी क्यूँ मांग रही है – अगर ठाकुर साहब को अपनी कोई भी चीज़ बेचनी है तो उनको इसका पूरा अधिकार है - वोः जैसा ठीक समझे वैसा करे – चल जा अपने हाथ ठीक से साफ़ कर के आ – कितने गंदे हो गए हैं…………………

दुर्गा – जी मालकिन

दुर्गा अपने हाथ साफ़ करती है इतने में ठाकुर साहब कमरे में आते है

ठाकुर साहब – अरे छुटकी ………….अपने घर में आ कर कितना अच्छा लगता है ………………बाहर इतनी तेज़ बारिश हो रही है – लेकिन यहाँ का वातावरण तुमने कितना अच्छा बना रखा है….

छुटकी जल्दी से अपने भाई का रेनकोट उतारने में उसकी मदद करती है और दुर्गा ठाकुर साहब को नमस्ते करती है

ठाकुर साहब – Thank You छुटकी ……………..अरे यह क्या आज फिर मेरी बेहेन की आंखों में आंसू………….क्या आज भी इस दुर्गा ने तुझे परेशान किया है क्या?

छुटकी – नहीं इस में दुर्गा की कोई गलती नहीं थी…………..लेकिन…….

ठाकुर साहब – अच्छा ठीक है इसके बारे में अपने बाद में बात करेंगे……………..अच्छा दुर्गा तुम जल्दी से घर चली जाओ , अब तुम्हारी माँ पहले से बहुत बेहतर है, डॉक्टर साहब ने उन्हें देख लिया है और दावाइयान भी दे दी है………………हाँ एक बात और घर में जरा दरवाज़ा धीरे से खोलना, तुम्हारी माँ की नींद बहुत कच्ची है जब मैं आया था तो वह सो रही थी ...........कहीं वोः सोते सोते जाग न जाए

दुर्गा – बहुत बहुत धन्यवाद ठाकुर साहब, आप हम गरीबों के बारे में कितना सोचते हैं

ठाकुर साहब – और दुर्गा मेरा रेनकोट वहां से ले लो और उसे पेहेन कर जाना .........बाहर जोरो की बारिश हो रही है

दुर्गा – नहीं नहीं ठाकुर साहब इसकी जरूरत नहीं है

छुटकी – अरे दुर्गा ठीक ही तो कहती है , जरा सी तो बारिश है इस के लिए इसे रेनकोट की क्या जरूरत है, दुर्गा तू जा....................

ठाकुर साहब – अरे छुटकी मैं अभी इसी बारिश में भीग कर आ रहा हूँ,...... बहुत तेज़ हैं दुर्गा बेचारी रेनकोट के बिना एक दम भीग जायेगी ………………..कहीं इसे बुखार वुखार न हो जाए, दुर्गा तुम मेरा रेनकोट ले कर ही जाओ.

दुर्गा ठाकुर साहब को धन्यवाद देती हुई कमरे से बाहर चली जाती है .................

छुटकी – मैं न तुम्हारी इन सब हरकतों से परेशान हो गयी हूँ, चलो अब चुप चाप से अपना खाना खा लो……देखो एक दम ठंडा हो गया है

ठाकुर साहब – हाँ हाँ …………….खाने की खुसबू बहुत अच्छी आ रही है और क्यूँ नहीं आएगी इसे मेरी प्यारी बेहेन ने जो बनाया है

छुटकी – भइया तुम मुझे यह बताओ की जब उसकी माँ की तबियत ठीक थी तो तुम्हे उसके घर में इतनी देर रहने की क्या ज़रूरत थी और वोः भी इतनी बारिश में...... तुम इन लोगों को नहीं जानते बस अपने ठाकुर साहब से मिलने के लिए ही हज़ार बहाने बना कर तुम्हे परेशान करते रहते हैं

ठाकुर साहब – अरे यह तो बहुत अच्छी बात है की लोग मुझ से मिलना चाहते हैं और इसी बहाने मुझे उनकी सेवा करने का मौका भी मिल जाता है

छुटकी – लोगों की सेवा तो तुम बहुत करते हो, लेकिन कभी अपने घर और उसमे रहने वाले लोगों के बारे में भी सोच लिया करो

ठाकुर साहब – अरे घर के बारे में सोचने के लिए मेरी छोटी सी बेहेन है न………………फिर मुझे घर की चिंता करने की क्या ज़रूरत है

छुटकी – हाँ मेरे बगैर तो तुम्हारा यह घर चल चुका…..तुम्हारे भरोसे छोड़ दूँ तो कोई भी ऐरा गैरा आएगा और मेरे सीधे सादे भाई को बेवकूफ बना के चला जाएगा……….. कोई मुफ्त में इलाज़ करवाएगा और कोई अपने मकान का ६ महीने का किराया लूट के ले जाएगा.

ठाकुर साहब – अगर लोग मुझ से झूट बोल के अपना कुछ काम करवा लेते है तो वोः उनकी समस्या है मेरी नहीं………..इसके लिए मैं अपना धरम तो नहीं छोड़ सकता.

छुटकी – भइया तुमको समझाना तो मेरे बस की बात है नहीं …..लेकिन इस तरह से तो हमारे घर में कुछ भी नहीं बचेगा

ठाकुर साहब – छुटकी दुनिया में इतनी दुःख और तकलीफे हैं और मैं तो उसके मुकाबले में कुछ भी नहीं कर पाता हूँ …..कुछ भी नहीं

छुटकी – तुम्हे दुनिया भर की दुःख और तकलीफें दिखती है पर जो लोग तुम्हारे करीब रहते है और तुमसे इतना प्यार करते हैं उनकी दुःख और तकलीफें तुम्हे नहीं दिखती. मेरे दुखों के बारे में तो तुम कभी नहीं सोचते……………………

ठाकुर साहब – तुम्हारे दुखों के बारे में मैं नहीं सोचता????? अरे क्या मैंने अपनी बेहेन को जाने अनजाने में किसी तरह का दुःख पंहुचा दिया? अरे हाँ ...........मैं जब आया था तब तुम रो रही थी……. क्या उसमे मेरा कोई कसूर था? लेकिन मैं तो कभी भी कोई ऐसा काम कर ही नहीं सकता जिस से मेरी बेहेन को तकलीफ हो……………..और भूल से अगर मैंने तेरा दिल दुखाया है तो मेरी बेहेन तू मुझे माफ़ कर दे………………

छुटकी – तुमको माफ़ करने से क्या सब कुछ ठीक हो जाएगा……….चलो ठीक है तुम अपना खाना खाओ…………

ठाकुर साहब – खाना तो मैं खा ही रहा हूँ …………..लेकिन…..

छुटकी – भइया तुम अभी भी एक छोटे से बच्चे की तरह हो …….मेरा जरा सा ध्यान इधर उधर हुआ नहीं और तुमने हमारी चांदी की नमक दानी उस दुर्गा को दे कर बिकवा दी…………..ऐसा तुमने क्यूँ किया भइया

ठाकुर साहब – ओ अब समझ में आया के मेरी बेहेन मुझसे इतनी क्यूँ नाराज़ है…………….वो चांदी की नमक दानी तुम्हे बहुत पसंद थी न………….

छुटकी – मुझे पसंद थी का क्या मतलब ……………..अरे वो नमक दानी पुश्तो से हमारे खानदान में है और हमारे पूर्वजो की निशानी है और तुमने उसे……………….

ठाकुर साहब – हाँ छुटकी तुम्हे दुःख तो होगा लेकिन नमक तो अपने चीनी मिटटी की नमक दानी में भी खा सकते हैं, है की नहीं……………

छुटकी – और कुछ दिन बाद तुम कहोगे की खाना अपने फर्श पे रख के खाया करे…………है न…..और उस मिसेज़ शर्मा को तो मैं देख लूंगी…….उसकी हिम्मत कैसे हुई मेरे भाई को इस तरह ठगने की………..कुछ दिन पहले ही तो मैंने उसकी अकल दुरुस्त की थी……………और उसके बाद मैंने यह सोचा था की अब येः यहाँ के चक्कर लगाना छोड़ देगी लेकिन बड़ी बेशरम है ये मिसेज़ शर्मा……………….

ठाकुर साहब – अरे छुटकी मैंने तो पेहले ये सोचा था की कुछ दिनों के लिए मिसेज़ शर्मा और उनकी बेटी हमारे यहाँ ही रह जाती मगर फिर मुझे तुम्हारा ख्याल आया, की तुम्हे शायद ऐसा करना अच्छा न लगे …………… …………… उनके मकान मालिक को मैंने बहुत समझाया .... आदमी तो बेचारा बहुत अच्छा है लेकिन भाड़े के बगैर उसको भी कुछ मुश्किलें आ रही थी, इस लिए मैंने मिसेज़ शर्मा का किराया चुका कर उनकी थोडी सी मदद कर दी.

छुटकी – लेकिन पैसे देने के लिए तुम्हे नमक दानी बेचने की क्या जरूरत थी

ठाकुर साहब – छुटकी तू तो जानती है के मेरे पास इतने पैसे इस समय नहीं थे..... फिर मुझे अपनी चांदी की नमक दानी का ख्याल आया और मैंने सोचा क्यूँ न उनसे किसी गरीब की थोडी सी मदद कर दी जाए. क्यूँ बेहेन मैंने कुछ ग़लत तो नहीं किया न? लेकिन अगर तुम्हे मेरे इस फैसले से दुःख पंहुचा है तो तुम अपने इस भाई को माफ़ कर देना.

छुटकी – तुमसे से बातों में आज तक कोई जीत सका है भला …तुम देख लेना कुछ दिनों के बाद तुम और किसी गरीब के लिए माँ के पूजा के दिए भी बेच दोगे.

ठाकुर साहब – नहीं नहीं बेहेन ऐसा मैं कभी नहीं कर सकता.

छुटकी – क्यूँ नहीं कर सकते……………उन्हें बेच कर तुम किसी और गरीब के मकान का भाड़ा तो चुका ही सकते हो……..

ठाकुर साहब – बात तो तुमने बहुत अच्छी बोली है बेहेन लेकिन मैं कभी नहीं चाहूँगा की मैं अपनी स्वर्गवासी माँ की आखरी निशानी को बेच दूँ……………..उन्होंने येः सोने के दिए मुझे तेरे जनम के वक्त दिए थे………….तुम्हारे जनम के बाद वो बहुत कमजोर हो गयी थी……तब उन्होंने अपनी आखिरी निशानी के तौर पे मुझे इसे सम्भाल के रखने को कहा था………और फिर कुछ दिनों के बाद वो हम सब को छोड़ कर इस दुनिया से हमेशा हमेशा के लिए चली गयी. छुटकी येः दिए मुझे अपनी जान से भी ज्यादर प्यारे हैं………….मैं इन्हे अपने से अलग करने के बारे में सोच भी नहीं सकता.

छुटकी – अब फिर तुमने मुझे अपनी माँ की याद दिला दी …….मुझे तो उनका चेहरा भी याद नहीं है …बस इन दीयों को देख कर उन्हें याद कर लेती हूँ........ ठीक है भइया अब तुम अपनी किताबें पढो ....मैं सोने के लिए जाती हूँ…………॥GOOD NIGHT। और हाँ ज्यादा देर तक पढ़ते मत रेह जाना………………आँखों पर बड़ा ज़ोर पड़ता है…………थोडी देर में सो जाना , ठीक है

ठाकुर साहब – ठीक है, ठीक है , तू मेरी इतनी चिंता मत किया कर, O K GOOD NIGHT………………………..

छुटकी सोने चली जाती है. ठाकुर साहब अपनी एक किताब निकाल कर टेबल पर पड़ने बैठ जाते है और वहीँ पर सोचते हुए कहते हैं

ठाकुर साहब – मेरी माँ के येः दिए भी तो किसी गरीब के आंसू पोछने के काम आ ही सकते हैं……माँ ऐसा करने पर नाराज़ थोडी न होगी ……बल्कि वो तो खुश हो जायेगी ........छुटकी ने बात तो बिल्कुल सच कही है……………चलो जैसा उपरवाला चाहेगा वैसा होगा …….

ठाकुर साहब किताब पड़ने लगते है और पीछे से खुले दरवाज़े से एक कैदी हाथ में चाकू लिए धीरे धीरे उनकी और बढता है और पीछे से उनका कोलार पकड़ कर के बड़ी ज़ोर से बोलता है

कैदी – ख़बरदार………..ज़रा सी भी आवाज़ नहीं करना…..नहीं तो येः छुरा तेरी खोपडी में घुसेड दूँगा…………राम नाम सत्य हो जाएगा

ठाकुर साहब – बेटे इस छुरे की कोई ज़रूरत नहीं है….जैसा की तुम देख ही रहे हो मैं तो अपनी किताब पढ़ रहा था……तुम घबराओ नहीं मैं ज़रा भी आवाज़ नहीं करूंगा……….बोलो मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ………….

कैदी – मुझे खाने को जल्दी से कुछ दो………..मैं कई दिनों से भूखा हूँ ……तिन दिनों से मैंने कुछ भी नहीं खाया है ……….भूक से मेरे पूरे शरीर में आग लगी हुई है…………..जल्दी से उठो और मेरे लिए कुछ खाने के लिए लाओ…..नहीं तो………

ठाकुर साहब – बेटे मेरे घर से कोई भी मेहमान खाली हाथ या भूखा नहीं जाता…………..थोड़ा सा रूको – मैं अपनी बेहेन को बुला देता हूँ…………उसके पास ही अलमारी की चाबी रहती है…..

ठाकुर साहब छुटकी को बुलाने के लिए कुर्सी से उठते हैं…

कैदी – सुनो अपनी कुर्सी पे बैठ जाओ…..ज़रा भी चालाकी करने की कोशिश मत करना………..तुम अपनी बेहेन को बुलाओगे न? ….और उसके साथ अपने घर के सारे नौकरों को भी जगा दोगे……….है न……………तुम्हारी खैरियत इसी में है की चुप चाप से उठो और मेरे लिए खाने का इन्तेजान करो……………नहीं तो मुझे तुम जैसे लोगों को सबक सिखाना बहुत अच्छी तरह से आता है……….

ठाकुर साहब – कई बार छुटकी को बोल चुका हूँ के खाने की अलमारी को ताला मत लगाया करो…..बेटे तुम्हे मुझसे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है………..इस घर में मेरे और मेरी बेहेन के अलावा और कोई नहीं रहता है.

कैदी – येः मुझे कैसे मालूम पड़ेगा के तुम इस घर में अकेले रहते हो…………….

ठाकुर साहब – क्यूँ की मैंने तुमसे अभी ऐसा कहा है …………और सारा शहर ये जानता है की मैं कभी झूठ नहीं बोलता.

कैदी – ह्म्म्म्म्म……………….चलो ठीक है ………….लेकिन याद रखना ज़रा भी होशियारी की तो येः चाकू सीधा तुम्हारे सीने में घोप दूँगा…..मेरे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है….

ठाकुर साहब – तुम्हारे पास खोने के लिए तुम्हारी आत्मा है………जो की मेरी जान से बहुत ज़्यादा कीमती है…..छुटकी ………..छुटकी ज़रा बाहर तो आना

छुटकी – जी भइया आ रही हूँ…

ठाकुर साहब - छुटकी देखो अपने घर में एक मेहमान आया है…अगर तुम्हे तकलीफ न हो तो ज़रा बहार आ कर खाने वाली अलमारी खोल देना ……………जिस से मैं इन्हे कुछ खाने को दे सकूं

छुटकी – इतनी रात गए यह कौन सा मेहमान आ गया………क्या अब हम लोगों को रात में सोने के बजाये मेहमानों की खातिर में ही लगे रहना होगा

ठाकुर साहब – लेकिन छुटकी हमारे इस मेहमान को जोरों की भूक लगी है

छुटकी – ठीक है भइया मैं आ रही हूँ ......अरे भइया यह कौन है? देखने से तो कोई डाकू लगता है और इसके हाथ में यह चाकू क्यूँ है?

ठाकुर साहब – चाकू शायद येः इस लिए लाये हैं क्यूँ की इन्होने सोचा होगा की शायद हमारे घर में चाकू नहीं है…इसी लिए……….

छुटकी – लेकिन भइया मुझे तो इसे देख कर ही डर लग रहा है........देखो कैसे भूखे भेड़िये की तरह हम लोगों को घूर रहा है.......ये तो शकल से ही बदमाश दीखता है ........

कैदी – ऐ ज्यादा बातें मत कर...... जल्दी से मेरा खाना लगा दे नहीं तो दोनों को सीधा यम् लोक भेज दूँगा

ठाकुर साहब – छुटकी तुम मुझे अलमारी की चाबी दे दो …………हाँ और अब तुम अपने कमरे में जाओ

कैदी – खबरदार तुम दोनों में से कोई भी यहाँ से हिलेगा नहीं ………चुप चाप दोनों यहीं पे खड़े रहो जब तक मैं यहाँ हूँ………

ठाकुर साहब – हाँ येः भी ठीक है छुटकी तुम ज़रा अपने मेहमान को टेबल पर बिठाओ मैं तब तक इनके लिए कुछ खाने को लेकर आता हूँ

छुटकी – ठीक है भइया

छुटकी DINING चेयर पर बैठती है

ठाकुर साहब – येः लीजिये मैं आप के लिए खाना परोस कर ले आया, अब आप इत्मिनान से इसको खाइए और अपनी भूक को शांत कीजिये

कैदी – ठीक है ठीक है ………….खाने को टेबल पर रख दो और जब तक मैं खा रहा हूँ तुम दोनों मेरी आंखों के सामने ही रहोगे………..समझे…………..

ठाकुर साहब कैदी के लिए एक चम्मच ले कर आते है और उसकी प्लेट के पास रख देते है

कैदी – येः क्या है …………..चम्मच …………..जेल में तो कोई हमें खाने के लिए चम्मच नहीं देता………….(और वो चम्मच को उठा कर फेंक देता है)

छुटकी – जेल में…………….तो क्या येः जेल से भाग कर हमारे यहाँ आया है ………..हे भगवान

कैदी जल्दी जल्दी खाने लगता है .....जानवरों की तरह ...............तभी उसे दरवाज़े पर किसी के आने की आहट सुनाई पड़ती है और वो चौंक के बोलता है

कैदी - येः दरवाज़े पर कैसी आवज़ है .....तुम लोग कैसे लोग हो .............रात में अपने खिड़की दरवाज़े बंद कर के नहीं सोते हो .......ऐसे तो कोई भी तुम्हारे घर में घुस आएगा ............

कैदी खिड़की दरवाज़े बंद करता है और फिर टेबल पर आ के खाने लगता है

ठाकुर साहब - ठीक इसी वजह से तो मैं कभी अपने खिड़की दरवाज़े बंद नहीं करता॥

कैदी - चलो अब तो येः बंद हो गए हैं न.....

ठाकुर साहब - हाँ बंद तो हो गए हैं ...लेकिन ३० सालों में पहली बार.....

कैदी जंगलीयो की तरह खाना खा रहा है और खाते खाते अपने मूह से कुछ निकाल कर फर्श पर फेंक देता है

छुटकी - अरे देखो तो इस कमबख्त ने मेरे साफ़ सुथरे फर्श को गन्दा कर दिया

ठाकुर साहब उठ कर फर्श पर से गिरी हुई चीज़ को उठाते हैं और उसे टेबल पर रक्खी हुई प्लेट पर रख देते हैं

कैदी - तुम लोगों को चोरों से डर नहीं लगता क्या ?

ठाकुर साहब - नहीं बिल्कुल नहीं , बल्कि मुझे तो उन पर दया आती है

कैदी - दया आती है .................हा हा हा ....दया आती है .................हा हा हा ..... चोरों पर और दया……………….बड़े अजीब इंसान हो .......अरे तुम हो कौन....... और करते क्या हो?

ठाकुर साहब – यहाँ पर लोग मुझे ठाकुर साहब कह के बुलाते हैं और हम लोग इस इलाके के ज़मींदार हैं

कैदी – तुम और ज़मींदार..हा हा हा…………..अरे ज़मींदार तुम्हारे जैसे थोडी न होते हैं - बन्दूक से लैस तुम्हारे पास तो गुंडों की एक पलटन होनी चाहिए …. और तुम तो यहाँ अपनी इस बेहेन के साथ अकेले रहते हो…………॥

ठाकुर साहब – छुटकी मेरे ख्याल से अब तुम्हे आराम करना चाहिए और मेरा विश्वास है हमारे मेहमान को इसमे कोई आपत्ति नहीं होगी

छुटकी – भइया मैं कैसे तुम्हे ऐसे जंगली इंसान के साथ छोड़ के जा सकती हूँ

ठाकुर साहब – छुटकी तुम अपने कमरे में जाओ..... जिस से मैं और मेरा यह मेहमान इत्मिनान से बातें कर सके

कैदी – क्या कहा आप ने ज़मींदार साहब………..तुम अपने कमरे में जाना चाहती हो - ठीक है चली जाओ – लेकिन याद रखना मेरा यह चाकू – ज़रा भी चालाकी नहीं करना – तब तक मैं ज़मींदार साहब से कुछ बातें करूंगा………॥

कैदी अपनी इस बात पर ज़ोर ज़ोर से हँसता है, छुटकी उठती है और अपने कमरे की तरफ़ चली जाती है

ठाकुर साहब – गुड night छुटकी

कैदी – ठाकुर साहब हा हा हा……………..ज़मींदार साहब हा हा हा ……..चलो तुम तो ज़मींदार हो………….लेकिन तुम्हे पता है की मैं कौन हूँ…………

ठाकुर साहब – मुझे लगता है की तुम एक ऐसे इंसान हो जिसने अपनी ज़िन्दगी में बहुत दुःख सहे हैं………।

कैदी – दुःख सहे है……………हाँ हाँ……मैंने अपनी इस ज़िन्दगी में बहुत दुःख सहे है ……………लेकिन यह तो बहुत दिनों पहले की बात है ……..यह तब की बात जब मैं तुम्हारे जैसे लोगों की तरह एक इंसान था…….लेकिन अब………..अब तो मैं इंसान नहीं हूँ ……अब तो मैं एक नम्बर हूँ ……मुझे तो इस दुनिया ने एक नम्बर बना दिया है………हाँ हाँ इंसान से मैं एक नम्बर बन गया हूँ ……………अपना नाम.....अपना नाम तो मुझे याद भी नहीं है ….अब तो मेरा नाम है कैदी नंबर एक हज़ार नौ ….१००९ और पिछले १० साल से मैं, तुम्हारे भगवन की बनाईं हुई इस दुनिया में नरक भोग रहा था…….नरक भोग रहा था…।

ठाकुर साहब – बेटे बड़े बूढे कह गए है की अपना दुःख किसी से बाँट लेने से दिल हल्का हो जाता है …………….तुम अपना दुःख मेरे साथ बाँट सकते हो………तुम कुछ नरक के बारे में बोल रहे थे न ……..क्या हुआ था वहां तुम्हारे साथ…॥

कैदी - तुम मेरे बारे में क्यूँ जानना चाहते हो ? ओ समझा .....मेरे बारे में जान कर तुम पुलिस को मेरे पीछे लगा दोगे .......है न .......और मेरे सर पे जो इनाम है .....वो तुम्हे मिल जाएगा .....क्यूँ?

ठाकुर साहब - नहीं बेटे मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा

कैदी - मुझे तुम पर विस्वास है .........पर पता नहीं क्यूँ ? क्यूँ की मैंने तो लोगों पर विस्वास करना छोड़ दिया है .............तुम शायद एक भले इंसान हो .....

ठाकुर साहब - अच्छा तुम मुझे उस समय की बातें बताओ जब तुम जेल नहीं गए थे ......अपने घर के बारे में बताओ .....तुम्हारे परिवार में कौन कौन था?

कैदी - बहुत दिनों पहले की बात है ......मेरा एक छोटा सा घर था ......उस घर के ठीक सामने मैंने अपने हाथों से एक ख़ूबसूरत बगीचा लगाया था .....और उस बगीचे के ठीक सामने एक छोटी सी नदी कल कल करते हुए बहती थी ....आज भी उस नदी के बहते हुए पानी की आवाज़ मेरे कानों में गूंजती रहती है .......और शाम को जब नदी के उस पार सूरज डूबता था तो वो नज़ारा कितना ख़ूबसूरत लगता था......हाँ उस घर में एक सुंदर सी परी रहती थी .........वो मेरी कौन थी ......हाँ हाँ ....शायद वो मेरी बीवी थी .......प्यार से मैं उसे गुडिया बुलाता था .........हम दोनों उस घर में कितने खुश थे ...............लेकिन तुम्हारा यह जो भगवन है न , उसे अच्छे लोगों की खुशी देखि नहीं जाती है ..............हाँ हाँ अब मुझे सब याद आ रहा है .....मेरी गुडिया बहुत बीमार थी......खाने के लिए हमारे घर में कुछ नहीं था ....मेरी नौकरी चली गई थी ....बहुत ख़राब समय चल रहा था ......मेरे पास गुडिया की दवाइयों के लिए भी पैसे नहीं थे .....और मेरी गुडिया बिना दवाई के तिल तिल कर के मर रही थी ........मेरी आंखों के सामने मेरी गुडिया मर रही थी .....बताओ तुम्ही बताओ मैं क्या करता .......मैंने लोगों से मदद मांगी ....मैं उनके सामने गिडग़ीडाय़ा लेकिन किसी ने मेरी एक न सुनी .......इसके बाद मेरे पास कोई चारा नहीं बचा था मैंने उसी दिन से इस चाकू को उठाया ....और फिर मैंने अपनी ज़िन्दगी की पहली चोरी की ...अपनी गुडिया को दवाई और खाना खिलाने के लिए मैंने चोरी की ........और एक दिन ....एक दिन उन लोगों ने मुझे पकड़ लिया ....मैंने उन लोगों के सामने हाथ जोड़े , उनके पैरों पर गिर गया , उन लोगों को अपनी गुडिया के बारे में बताया .....बताया के वो कितनी बीमार है .....लेकिन उन में से किसी ने मेरे आंसू नहीं पोछे ....उल्टे सब मेरी हालत पर हंसने लगे , मेरी बहुत हँसी उढाई थी उन लोगों ने .... और फिर मुझे १५ सालों की जेल हो गई ....और जिस रात मुझे जेल में लाया गया .........उसी रात वहां के जेलर ने मुझे बताया की मेरी गुडिया ........मेरी गुडिया मुझे इस दुनिया में अकेला छोड़ के चली गई ....मुझे अकेला छोड़ के चली गयी .....मैं उसके लिए कुछ भी नहीं कर पाया...कुछ भी नहीं कर पाया (कैदी बहुत जोरों से सुबक सुबक के रोने लगता है)

ठाकुर साहब कैदी के माथे पर हाथ फेर कर उसे सान्तवना देते हैं और बोलते हैं

ठाकुर साहब - बेटे तुमने सच में जिंदगी में बहुत कुछ खोया है .......भगवान इन दुखों को भूल जाने में तुम्हारी मदद करें ........इस के बाद फिर क्या हुआ ?

कैदी - जैसा मैंने तुम्हे बताया .................किसी वक्त में मैं भी तुम्हारे जैसा एक अच्छा इंसान था .........इन लोगों ने मेरे अन्दर बसने वाले आदमी का खून कर दिया .......अब मैं आदमी नहीं हूँ एक जानवर से भी गया बिता हूँ .........और मेरी यह हालत इन लोगों ने बनाई है ..............जेल में ये लोग मुझे जंजीरों से बाँध कर खूब पिटते थे......कुत्ते की तरह मारते थे ............मेरा खाना जमीन पर फेक देते थे ......और मजबूरी में वो ज़मीन पर फेंका हुआ खाना मैं खाता था .......मार खाते खाते मेरे सारे शरीर में घाव हो गए थे ....................उन घावो पर मंखिया भींभिनाय करती थी ................दवाई तो दूर रही ................मेरी इस हालत पर इन कमीनों को तरस नहीं आता था ...........उन्ही खून निकलते घावों पर मुझे बेदर्दी से और पीटा जाता था.........जमीन पर मुझे सोना पड़ता था ..............सारे शरीर में एक असहनीय पीडा होती थी और जब मैं इसके बारे में फरियाद करता था तो मुझे और पीटा जाता था...................इस तरह मार खाते खाते मुझे दस साल उस नरक में बिताने पड़े .....................वहां पर मैं इंसान से जानवर बन गया ...ऐसा जानवर जिसमे इंसानों जैसी कोई बात थी ही नहीं ..............उन लोगों ने मेरा नाम मुझसे छीन लिया ...मेरी आत्मा मुझे से छीन ली ...............और मेरी जगह इस शैतान ने ले ली जो की आज तुम्हारे सामने है ..............लेकिन एक दिन ...............एक दिन वो लोग थोड़े से लापरवाह हो गए .............एक दिन वो लोग इस जानवर को जंजीरों से बांधना भूल गए ..............और ये जानवर उस नरक से भाग निकला ............मैं उस नरक से आजाद हो गया ...................आज से ठीक ६ हफ्ते पहले मैं उस नरक से भागा था ........६ हफ्तों से मैं आजाद हूँ ............आजाद हूँ लेकिन भूक से मरने के लिए.......................

ठुकर साहब - भूक से मरने के लिए?

कैदी - हाँ हाँ भूक से मरने के लिए ................नरक में तुम्हे खाना मिल जाता है , चाहे वो ज़मीन पे फेंका हुआ ही क्यूँ न हो ...............वो लोग चारों तरफ़ भूके भेड़ियों की तरह मेरी तलाश कर रहे थे ...............और मेरे पास कोई पहचान पत्र नहीं था, पैसे नहीं थे , कोई नाम नहीं था ............ऐसे में मैंने फिर चोरी की ..........पहले मैंने ये कपड़े चुराए॥ फिर रोज़ मैं अपना खाना चुरा के खाता था...............जंगल में जा कर सो जाता था ..........किसी किसान के घर जबरदस्ती घुस जाता था..................जैसे भी किसी तरह बचते बचाते मैं तुम्हारे घर तक पंहुचा हूँ ........आज मैं जैसा भी हूँ ये उन लोगों के अत्याचार की बदौलत हूँ ...................तुम भागवान को मानते हो न .............(ठाकुर साहब सर हिला कर हाँ कहते हैं )..............तो देख लो क्या क्या किया है तुम्हारे भागवान ने ...............इस दुनिया में जो दूसरों को सताते हैं वो ऐश करते और हमारे जैसे गरीब जिन्होंने दो वक्त की रोटी से ज्यादा इस दुनिया से या फिर उस भागवान से, कभी कुछ नहीं माँगा ......................उन लोगों को दो रोटी के लिए, देखो कैसे इंसान से जानवर बनना पड़ता है ................अब अपने भागवान से कह कर इन लोगों को सज़ा क्यूँ नहीं दिलाते .................तुम तो ठाकुर साहब हो न ....जमींदार हो .........बताओ क्या ऐसा कर सकते हो मेरे लिए?

ठाकुर साहब - बेटे मुझे पता है तुमने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ सहा है ..............लेकिन ये बात याद रखना की हर रात के बाद सुबह ज़रूर होती है ..............तुम्हारे दुखों का अंत ज़रूर होगा .......अपने मन में आशा का दिया जलाये रखो.....

कैदी - आशा का दिया जलाये रखो ................हा हा हा .............(कैदी बहुत जोरों से हँसता है)

ठाकुर साहब - तुम ज़रूर बहुत थक गए होगे , अब तुम उस सोफे पर ज़रा आराम करो मैं तुम्हारे सोने के लिए चादर ले कर आता हूँ

कैदी - और तुम्हारे जाने के बाद कोई यहाँ आ गया तो?

ठाकुर साहब - तुम चिंता मत करो यहाँ पर इस समय कोई नहीं आता और अगर कोई आ भी गया तो क्या तुम मेरे दोस्त नहीं हो?

कैदी - मैं और तुम्हारा दोस्त !!!!

ठाकुर साहब - हाँ आज से तुम मेरे दोस्त हो और इस इलाके में मेरे दोस्त की तरफ़ कोई आँख उठा कर भी नहीं देख सकता

कैदी - मैं और ठाकुर साहब का दोस्त ..............नहीं, नहीं ........ज़मींदार साहब का दोस्त ............(कैदी अपना सर खुजलाता है)

ठाकुर साहब - मैं अभी तुम्हारे लिए चादर ले कर आता हूँ

कैदी - (सर खुजलाता हुआ इधर उधर देखता है ) ठाकुर साहब का दोस्त .............अच्छा है ............कैदी नम्बर एक हज़ार नौ ठाकुर साहब का दोस्त.................हा हा हा ..........(तभी उसकी नज़र ठाकुर साहब के सोने के दिए की तरफ़ पड़ती है , वो पहले तो चारों तरफ़ देखता है की वहां कोई है तो नहीं , फिर चुपके चुपके दिए की तरफ़ बढ़ता है, दिए को दोनों हाथों से उठा कर उसका वजन देखता है )
अरे ये तो सोने का है ........और भारी भी है ...........अरे भगवान् तुने इस शैतान की बात सुन ली ...............इसके तो बहुत पैसे मिलेंगे ......

तभी पीछे से ठाकुर साहब के आने की आहट होती है , कैदी जल्दी से दिए को उसकी जगह पर रखना चाहता है लेकिन जल्दी में वो उसके हाथ से गिर जाता है और ठाकुर साहब ऐसा करते हुए उसे देख लेते हैं

ठाकुर साहब - अरे तुम मेरे दिए को देख रहे थे ................बहुत ख़ूबसूरत है न ? यह दिए मेरी माँ की आखिरी निशानी हैं ................उन्होंने मरते वक्त मुझे इसे संभाल के रखने के लिए कहा था ...............लेकिन शायद माँ का यह तोहफा इस साधारण से कमरे के लिए बहुत कीमती है ..................फिर भी जब भी मैं इन दीयों को देखता हूँ तो मेरी माँ मेरी आंखों के सामने आ जाती है और इनके रहते मुझे अपनी माँ की कमी कभी नहीं खटकती है ......चलो अब सुबह उठ कर बातें करेंगे अब तुम सो जाओ .............तुम्हारा बिस्तर एक दम तैयार है .....क्या तुम अभी सोना चाहोगे?

कैदी - हाँ हाँ मैं अभी सोना तो चाहूँगा ...............लेकिन ......यह बताओ की तुम मेरे साथ इतना अच्छा व्यवहार क्यूँ कर रहे हो ? तुम मुझसे चाहते क्या हो ?

ठाकुर साहब - अभी तो मैं तुम से सिर्फ़ इतना चाहता हूँ की तुम अभी आराम से सो जाओ , ठीक है

कैदी - ओ अब मैं समझा .............तुम मुझे अपनी तरह एक धार्मिक इंसान बनाना चाहते हो .............मुझे पाप के रास्ते से हटा कर धर्मं के मार्ग पर चलाना चाहते हो ........ऐसा ही कहते हो न तुम लोग ........लेकिन एक बात अच्छी तरह से सुन लो .............न तो मुझे तुम से कोई मतलब है , न तुम्हारे इस भगवान से ..............मन्दिर गए हुए मुझे पता नहीं कितने बरस हो गए ...............और सच बात तो यह है की मन्दिर जाने वाले पाखंडियों से मुझे सख्त नफरत है ........................इन लोगों के मूह में तो राम राम रहता है लेकिन बगल में इतनी बड़ी छुरी ले कर घूमते हैं ...हाँ हाँ मुझसे भी बड़ी .................मेरी छुरी तो दिखलाई पड़ती है ..............लेकिन इन लोगों की छुरी को तो तुम्हारा भगवन भी नहीं देख सकता ................हा हा हा ..................मुझे मन्दिर और तुम्हारे भगवान से घृणा है.........

ठाकुर साहब - तुम्हे मेरे भगवान से घृणा हो सकती है लेकिन विस्वास करो मेरा वो भगवान तुमसे ज़रा भी घृणा नहीं करता बल्कि वो तो तुमसे बहुत प्यार करता है

कैदी - ज़मींदार साहब मुझ पर ये अपनी बातों का जादू चलाने की चेष्टा भी मत करना ................जेल में इस तरह के भाषण मैं बहुत सुन चुका हूँ ...........तुम सब के सब पाखंडी हो .....कहते कुछ हो और करते कुछ और ही हो....

ठाकुर साहब - चलो कोई बात नहीं अब तुम सो जाओ

कैदी - मैं तो सो ही जाऊंगा ................लेकिन ठाकुर साहब आज के बाद यह अच्छा बनने का भाषण तुम मेरे सामने नहीं दोगे ..............समझ गए ......अच्छा तुमको यकीन है की इस समय यहाँ पर कोई नहीं आता है

ठाकुर साहब - मुझे तो ऐसा ही यकीन है ...........लेकिन तुमने तो ख़ुद ही बहार का दरवाज़ा और खिड़किया बंद की है ......है ना

कैदी - ठीक है ठीक है .....अब तुम जाओ .............मैं भी सोने की कोशिश करता हूँ ..................

ठाकुर साहब - बहुत अच्छा .................गुड NIGHT .............फिर सुबह मिलेंगे

ठाकुर साहब अपने कमरे की तरफ़ चले जाते हैं।

जैसे ही ठाकुर साहब कमरे से बहार जाते हैं कैदी अपने बिस्तर से उठ कर दरवाज़े की तरफ़ जाता है

कैदी - दरवाज़े पर ताला तो लगना ही चाहिए ................सिर्फ़ एक कुण्डी पर इतनी बड़ी हवेली की रखवाली हो रही है ....ऐसे में किसी को नींद आ सकती है क्या? ( कैदी इधर उधर देखता है और फिर दिए की तरफ़ बढ़ता है)

कैदी - चलो इस दिए को एक बार फिर देख लूँ .....................(दिए को फिर जरा ध्यान से देखता है) इस दिए की कीमत लाखों में होगी ...................अगर मैं इस दिए को बेच दूँ तो मेरी तो जिंदगी ही बन जायेगी ................फिर रोज़ रोज़ तो ये चोरी चमारी नहीं करनी पड़ेगी ..................ह्म्म्म........लेकिन इस बूढे को इन दीयों से बड़ा लगाव है .........कहता था उसकी माँ की आखिरी निशानी है .............ह्म्म्म ............लेकिन क्या इन लोगों ने मेरी माँ के बारे में सोचा था जब इन लोगों ने मुझे नरक में मरने के लिए भेज दिया था ..................पर इस ठाकुर साहब ने तो मुझे अपना दोस्त बनाया है .................और मेरे साथ आदमियों की तरह अच्छा व्यवहार भी किया है ............तो क्या मुझे ऐसे आदमी को धोखा देना चाहिए .......................अरे यह मैं क्या सोचने लगा ................मैं कमजोर तो नहीं हो रहा हूँ ...........जेल में अगर किसी को पता चल गया की मैं किसी के बारे में अच्छा सोच रहा हूँ तो बहुत हसेंगे मुझ पर .....कैदी नम्बर एक हज़ार नौ को चोरी करने में हिचकिचाहट हो रही है ...........अरे मुझे क्या लेना देना है इस ठाकुर साहब से .................और अगर मैं यहाँ रुक भी गया तो ये ठाकुर साहब सुबह होते ही मुझे अच्छा आदमी बनाने के लिए भाषण देना शुरू कर देगा .................और फिर से मैं पड़ने लगूंगा ..................तो कैदी नम्बर एक हज़ार नौ इस सोने के दिए को उठाओ और यहाँ से नौ दो ग्यारह हो जाओ .................ठाकुर साहब और उसके भाषण को गोली मारो .......................ठीक है न.....................हा हा हा........(कैदी दिए को उठता है और दरवाजे से तेज़ी से निकल जाता है )

जैसे ही वो बहार जाता है दरवाज़ा बंद होने की बड़े ज़ोर से आवाज़ होती है

छुटकी - (आखें मलती हुई बहार आती है )

छुटकी – अरे दरवाज़े पर कौन है? पता नहीं इतने ज़ोर से दरवाज़ा किसने बंद किया है……………….अरे क्या रात भर हम लोग सोये नहीं …………..बस किसी न किसी की खातिरदारी में लगे ही रहे………..अरे यहाँ तो कोई भी नहीं है………..मैंने तो ज़रूर बाहर का दरवाज़ा बंद होते हुए सुना था ……..पता नहीं वो भूत कहाँ चला गया…(छुटकी दिए की जगह की तरफ़ देखती है और समझ जाती है की दिया वहां से गायब है)………..हे भगवान …………….भइया भइया जल्दी आओ …………..वो गुंडा हमारी माँ के दिए लेकर भाग गया……………….जल्दी आओ भइया…………..वो कमीना माँ के दिए चुरा के भाग गया……….

ठाकुर साहब कमरे में आते हैं…………..

ठाकुर साहब – क्या बात है छुटकी? तू इतनी ज़ोर से चिल्ला क्यूँ रही है?

छुटकी – भइया वो दिए चुरा कर भाग गया……….मैंने तुमसे कहा था न, वो देखने से कोई डाकू मालूम पड़ता था………लेकिन तुमने मेरी एक न सुनी…………

ठाकुर साहब – क्या वो मेरे दिए ले कर भाग गया…………ओह ऐसा उसने क्यूँ किया…………….बहुत ग़लत किया उसने……अब मैं अपनी माँ को क्या मुह दिखलाऊँगा ………..भगवान ये तुम मेरा कैसा इम्तिहान ले रहे हो…………..मेरे घर में बस वोही तो एक चीज़ बची थी…………….

छुटकी – भइया तुम जल्दी से पुलिस को ख़बर कर दो……….वो ज्यादा दूर नहीं गया होगा……………ज़रूर पकड़ा जाएगा……और तुम्हे तुम्हारे दिए भी ज़रूर मिल जायेंगे….वैसे तुम जैसे आदमी को वो वापस तो मिलने नहीं चाहिए…………….अपने घर में जो किसी भी अनजान आदमी को आने देता है, उसे प्यार से खिलाता पिलाता है और फिर अपने बिस्तर में उसे सुलाता भी है……………..ऐसे आदमी का पूरा घर भी लुट जाए तो इसमे आश्चर्य की कौन सी बात है……….

ठाकुर साहब – तुम ठीक कहती हो छुटकी, मुझे ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए थी……………..मैंने ही उसे इस कीमती दिए के साथ अकेला छोड़ कर गलती की…………..और इसी लिए उसकी नियत ख़राब हो गई .....मुझे उसको अकेला नहीं छोड़ना चाहिए था ..............मैंने ही गलती कर दी

छुटकी – भइया दूसरो की गलती को अपना बनाना तो कोई तुम से सीखे……………..चोरी की उस कमीने ने …………..और गलती तुम्हारी हो गयी……अरे वो तो पैदाइशी चोर दीखता था……….तुम पुलिस को ख़बर करोगे या नहीं? ….. अगर तुम्हारा जवाब न है तो मैं अभी जा कर थाने में रिपोर्ट लिखाती हूँ………….ठाकुर साहब की बेहेन को तो कोई मना करेगा नहीं……………संग संग पुलिस हरकत में आएगी और वो गुंडा रंगे हाथों पकड़ा जाएगा और फिर वो सालों तक जेल में सड़ेगा…………..

ठाकुर साहब – नहीं नहीं छुटकी ………..उसकी इतनी दर्द भरी कहानी सुन ने के बाद मैं फिर कभी भी उसे जेल नहीं भेज सकता………मुझे लगता है की भगवान ने मूझे मेरी गलती की ठीक ही सजा दी है………..इतनी कीमती चीज़ अपने पास रखने की मुझे क्या ज़रूरत थी…………अगर पहले ही वो किसी गरीब के काम आ गयी होती , तो आज मुझे ये दिन नहीं देखना पड़ता……..या शायद अनजाने में मुझे से ही कोई भूल हो गयी होगी…………लेकिन फिर भी ......ऐसा मेरे साथ नहीं होना चाहिए था……………

छुटकी – भइया यह तुम कैसी बात कर रहे हो………मैं अभी थाने जाती हूँ …………मैं अपने भाई को ऐसे लुटते हुए नहीं देख सकती…………मैं तुम्हे अच्छी तरह से जानती ……..तुम जान बुझ के तो किसी तिनके को भी दुःख नहीं पंहुचा सकते…..मेरी नज़र में तो तुम सिर्फ़ इस इलाके के ठाकुर साहब ही नहीं हो …………बल्कि शायद तुम इस देश के सब से अच्छे आदमी हो…………लेकिन भइया तुम्हे दुनिया दारी के बारे में कुछ भी पता नहीं है …………तुम इतने भोले हो कि कोई भी तुम्हे बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा कर लेता है …….मैं तुम्हे इस तरह बरबाद होते हुए नहीं देख सकती………मैं अभी पुलिस थाने जा रही हूँ……..

ठाकुर साहब – छुटकी तू ऐसा कुछ भी नहीं करेगी….तुझे मेरी कसम है………..वो दिए हमारी माँ ने मूझे दिए थे ……इतने दिनों से वो मेरे पास थे………..अब वो उसके पास है….शायद उसे उनकी मेरे से ज्यादा ज़रूरत है………..शायद वो उन दीयों को बेच कर अपने पहाड़ जैसे दुखों को कुछ कम कर पायेगा…………..माँ होती तो शायद वो भी ऐसा ही सोचती और कहती…………..

छुटकी – लेकिन भइया..........

इतने में बाहर के दरवाज़े पर बहुत ज़ोर से दस्तक होती है, और जेल के दरोगा त्रिभुवन सिंह जी कि आवाज़ आती है

कोतवाल त्रिभुवन सिंह – ठाकुर साहब , ठाकुर साहब क्या हम अन्दर आ सकते हैं……………..हमने आप के घर में चोरी करने वाले चोर को पकड़ लिया है…

ठाकुर साहब – हाँ बेटे दरवाज़ा खुला है ……..आ जाओ

कोतवाल साहब कैदी को पकड़ कर कमरे में प्रवेश करते है ........उनके हाथ में ठाकुर साहब के दिए हैं

छुटकी – चोर, बदमाश…………अच्छा हुआ कोतवाल साहब ने तुझे पकड़ लिया

त्रिभुवन सिंह – हाँ मैडम यह बदमाश रात के अंधेरे में अपनी बगल में कुछ दबाये भाग रहा था………….मूझे देखते ही इस पर शक हुआ …………….मैंने इसे आवाज़ दे कर रोकना चाहा………..लेकिन मेरी आवाज़ सुन के बाद ये और तेज़ी से भागने लगा…….तब मैंने और मेरे सिपाहियों ने इसका पीछा किया और बड़ी मुश्किल से इसे पकड़ा……………अरे बड़ी ताकत है इसमे………..हम ६ आदमियों के साथ ये इतनी देर तक लड़ा है. …… बड़ी मुश्किल से काबू में आया है…………और लड़ते लड़ते यह दिए इसके कपडों में से गिर गए……….मैं तो ठाकुर साहब के इन दीयों को अच्छी तरह से पहचानता था ………इस लिए मैं सब से पहले इसे ठाकुर साहब के पास ले आया……..ठाकुर साहब आप इसे पहचान लीजिये………और फिर हम इसे हवालात में कई सालों के लिए बंद कर देंगे…………और इसे ऐसा सबक सिखायेंगे के यह बदमाश शायद फिर कभी किसी शरीफ आदमी को परेशां नहीं कर पायेगा……….मूझे तो यह छठा हुआ बदमाश लगता है ……..इसकी हालत देख कर मूझे तो यह किसी जेल से भागा हुआ कैदी लगता है…………

जब कोतवाल त्रिभुवन सिंह यह बातें बता रहा था, तब ठाकुर साहब बड़े प्यार से कैदी कि तरफ़ देख रहे थे और कैदी उन्हें बड़े गुस्से से घूरे जा रहा था…………बिना किसी शर्म के……….

ठाकुर साहब – लेकिन कोतवाल साहब आप से ज़रूर कोई भूल हो रही है…………….यह साहब कोई चोर वोर नहीं है …..बल्कि यह तो मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं……॥

कोतवाल त्रिभुवन सिंह – यह आदमी और ठाकुर साहब का दोस्त!!!!!!!! ठाकुर साहब आप यह क्या कह रहे हैं?

ठाकुर साहब – कोतवाल साहब मैं ठीक कह रहहूँ ……यह साहब तो आज शाम से ही मेरे घर में मेहमान थे, इन्होने यहाँ हम सब के साथ खाना खाया और फिर हम कुछ देर पहले तक एक दूसरे से बातें कर रहे थे………….मैंने तो इनको रात में यहीं रुक जाने के लिए कहा भी था …………..लेकिन इन्होने मेरी एक न सुनी…कहने लगे कि किसी ज़रूरी काम से इन्हे शहर जाना है….और यह दिये इन्होने चुराए नहीं है बल्कि मैंने ही इन्हे दिए हैं

कोतवाल त्रिभुवन सिंह – ठाकुर साहब आप ने इतने महंगे दिये इस जैसे दिखने वाले सक्ष को दे दिये???? विश्वास नहीं होता.

ठाकुर साहब – (ऊँची आवाज़ में) तो आप के कहने का मतलब है कि मैं झूट बोल रहा हूँ………..

कोतवाल त्रिभुवन सिंह – नहीं नहीं ठाकुर साहब आप और झूट………..ऐसा तो मैं सपने में भी नहीं सोच सकता

ठाकुर साहब – तो अब आप इन्हे छोड़ दीजिये

कोतवाल त्रिभुवन सिंह – लेकिन ठाकुर साहब इस आदमी के पास कोई पहचान पत्र भी नहीं है और मेरे लाख पूछने पर भी इसने मूझे अपना नाम भी नहीं बताया.

ठाकुर साहब – मैं आप से कह रहा हूँ न कि यह सज्जन मेरे बहुत पुराने मित्र है………….क्या इतना परिचय आप के लिए काफी नहीं है………

कोतवाल त्रिभुवन सिंह - जी ठाकुर साहब यह तो काफी है…लेकिन

ठाकुर साहब – ये सज्जन तुम्हारे ठाकुर साहब के पुराने मित्र हैं ………….अब क्या मूझे तुम को ये भी याद दिलाना पड़ेगा कि जब तुम पुलिस में भरती होना चाहते थे तो तुम्हारे लिए सिफारशी छिट्ठी मैंने ही लिखी थी….वो दिन शायद तुम भूले नहीं हो ........

कोतवाल त्रिभुवन सिंह – नहीं ठाकुर साहब आप का वो एहसान मूझे अच्छी तरह याद है….ठीक है मैं इस व्यक्ति को आप के हवाले छोड़ कर जा रहा हूँ…………..गुड NIGHT

कोतवाल त्रिभुवन सिंह कैदी को ठाकुर साहब के कमरे में छोड़ कर चला जाता है

कैदी – (बहुत धीरे धीरे बोलता है….जैसे किसी सपने से जगा हो) ठाकुर साहब आप ने……आप ने….उस कोतवाल से यह कह दिया कि वो दिये आप ने मूझे दिये थे……….हे भगवान……….यह मुझ से क्या हो गया

छुटकी – अरे पापी, तू इतना बड़ा नीच है, धोखेबाज है, एक नम्बर का चोर है…………जिस देवता जैसे इन्सान ने तुझे शरण दी, तुझ जैसे नीच आदमी को इतना प्यार दिया, अपनी डाइनिंग टेबल पर तुझे बिठा कर अपने हाथों से तुझे खाना खिलाया….ऐसे आदमी कि माँ कि आखिरी निशानी को जानते बुझते तू ले कर भाग गया…………….अरे तेरे जैसे आदमी को तो नरक में भी जगह नहीं मिलेगी

थाकुइर साहब – छुटकी भगवान के लिए ऐसे अपशब्दों का प्रयोग मत करो……………तुम अपने कमरे में जाओ

छुटकी – हाँ और तुम्हे इस शैतान के पास छोड़ जाऊं ताकि ये तुम्हे फिर लुट के चला जाए………….अरे ये तो इतना कमीना और पापी है कि तुम्हारा खून करने में भी इसे ज़रा भी संकोच नहीं होगा……………. ये पैसे के लिए कुछ भी कर सकता है

ठाकुर साहब – छुटकी तुम अपने कमरे में जाओ , यह मेरी इच्छा है

छुटकी – ठीक है अगर मूझे यहाँ से जाना ही है तो मैं ये दिये अपने साथ लेकर जाऊंगी

छुटकी आगे बढ़ कर दिये अपने हाथों में उठा लेती है

ठाकुर साहब – छुटकी तुम दीयों को टेबल पर रख कर अपने कमरे में जाओ

छुटकी – नहीं मैं ऐसा हरगिज़ नहीं करूंगी

ठाकुर साहब – छुटकी यह तुम्हारे ठाकुर साहब का हुक्म है

छुटकी इस के बाद कुछ नहीं बोल पाती है और बड़े बेमन से अपने कमरे कि तरह चली जाती है

कैदी – ठाकुर साहब मूझे बहुत खुशी है कि आप ने मूझे उन भेड़ियों के हवाले नहीं किया………….नहीं तो वो लोग मूझे फिर उसी नरक में ले जाते ………….और फिर वहां न जाने मेरा क्या होता?

ठाकुर साहब – अरे इसके बारे में तुम ज़रा भी मत सोचो…….अच्छा अब तुम क्या अपने बिस्तर में थोडी देर के लिए सोना नहीं चाहोगे………….देखो एक दम तैयार है

कैदी – नहीं नहीं ठाकुर साहब मैं ऐसा नहीं कर सकता…..मूझे अभी यहाँ से निकल जाना होगा……..और कल सुबह तक मैं कलकत्ता पहुच जाऊंगा………बहुत बड़ा शहर है…………..वहां लाखों लोगों कि भीड़ में मैं आसानी से खो जाऊंगा………..वहां ये भेडिए मेरा कुछ भी बिगड़ नहीं सकेंगे…………..दिन में मैं वहां पहुँच नहीं सकता…पकड़ा जाऊँगा .......इस लिए मूझे ये काम रात के अंधेरे में ही करना होगा……आप मेरी बात को समझ रहे है न ठाकुर साहब…………..

ठाकुर साहब – हाँ हाँ एक दम समझ रहा हूँ …………रात में जाना ही तुम्हारे लिए अच्छा है

कैदी – ठाकुर साहब मूझे जरा भी भरोसा नहीं था कि इस दुनिया में अच्छे लोग या अच्छाई हो सकती है…………दस साल नरक में रहने वाला ऐसा सोच भी कैसे सकता है …….लेकिन अब मूझे पूरा यकीन हो गया है कि आप एक बहुत अच्छे इंसान हो…..मेरे लिए तो आप किसी देवता से कम नहीं है …..इस लिए मैं आप से ये बिनती करूंगा कि जाने से पहले आप मूझे अपना प्यार भरा आशीर्वाद दे दीजिये …………(कैदी ठाकुर साहब के पैरों में गिर जाता है) आप जैसे से देवता से आर्शीवाद ले कर शायद मैं भी एक अच्छा आदमी बन सकूं………ये मेरा विश्वास है….

ठाकुर साहब उसके सर पर हाथ रखते हैं और प्यार से उसे गले लगा लेते हैं

कैदी – गुड NIGHT ठाकुर साहब मैं चलता हूँ

ठाकुर साहब – बेटे ज़रा रुको ………….तुम अपनी अमानत तो यहीं छोडे जा रहे हो

(ठाकुर साहब दिये को टेबल से उठा कर कैदी के हाथ में दे देते हैं)

कैदी – नहीं नहीं यह मैं कैसे ले सकता हूँ…………ठाकुर साहब आप…..

ठाकुर साहब – बेटे इसे अपने ठाकुर साहब कि तरफ़ से स्वीकार कर लो…………तुम इसे स्वीकार कर लोगे तो मूझे और मेरी माँ कि आत्मा को बहुत खुशी मिलेगी ...........इस लिए मेरी खुशी के लिए इसे अपने पास रख लो

(कैदी दीयों को स्वीकार करता है)

ठाकुर साहब – और हाँ सुनो अब तुम सामने के दरवाज़े से नहीं बल्कि पीछे के दरवाज़े से जाना – वहां से जो सड़क जाती है वो सीधे तुम्हे कलकत्ता ले जायेगी…………सुबह तक तुम वहां ज़रूर पहुच जाओगे………..एक बात और है ............ जहाँ तक मेरा ख्याल है यह पीछेवाली सड़क बहुत सूनसान रहती है और सूनसान सड़कों पर इतनी रात गए पुलिस वाले कम ही निकलते हैं……

कैदी – बहुत बहुत धन्यवाद ठाकुर साहब………..मैं कितना बड़ा पापी हूँ कि मैंने आप जैसे फ़रिश्ते को धोखा दिया….(कैदी रोने लगता है)………..आप कि अच्छाई ने मूझे एक नया जनम दिया है………….आज से मैं जानवर नहीं रहा …..फिर से पहले वाला इंसान बन गया हूँ…………और यह सिर्फ़ आप ही कि बदौलत हुआ है ........

ठाकुर साहब – (कैदी के कंधे पर हाथ रखते हुए) बेटे यह हमेशा याद रखना कि इस संसार में कोई भी इंसान अच्छा या ख़राब नहीं होता…………….परिस्थिति उसे अच्छा या ख़राब बनने पर मजबूर कर देती हैं……….अगर हम सब एक दूसरे के काम आना सीख जायें…………एक दूसरे को प्यार देना और लेना सीख जायें …………तो फिर इस संसार में किसी भी व्यक्ति को तुम्हारी तरह इंसान से जानवर नहीं बनना पड़ेगा………….हाँ एक बात और याद रखना….हर एक इंसान के दिल में भगवान रहते है ………..इस लिए दुनिया में हर इंसान का दिल एक मन्दिर है, शिवालय है, किसी भी तीरथ स्थान से कम नहीं है ...............दिन दुखियों के दिल की पीडा को मिटाना ही भगवान् की सबसे बड़ी पूजा है........और जो इंसान ऐसी पूजा करता उसके प्यार की जीत हमेशा होती है ............

कैदी – हाँ ठाकुर साहब …………….मैं यह हमेशा याद रखूंगा कि सच्चे प्यार की जीत कैसे होती है………….इंसान प्रेम से दुनिया कि किसी भी बुराई को जड़ से मिटा सकता है…………दुनिया के हर इंसान के दिल में वो परमपिता परमेश्वर रहता है…..इस लिए दुनिया का हर इंसान अपने आप में एक मन्दिर है, शिवालय है, तीर्थ स्थान है………………

कैदी ऐसा कहता हुआ, ठाकुर साहब से विदा लेता है…….

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