सांस चलती है तुझे,
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर.
चल रहा है तारकों का,
दल गगन में गीत गाता,
चल रहा आकाश भी है,
शुन्य में भ्रमता भ्रमाता,
पांव के नीचे पड़ी,
अचला नहीं ये चंचला है,
एक कण भी, एक क्षण भी,
एक थल पर टिक न पाता.
शक्तियां गति की तुझे,
सब ओर से घेरे हुए हैं,
स्थान से अपने तुझे,
टलना पड़ेगा ही मुसाफिर,
सांस चलती है तुझे,
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर.
थी जहाँ पर गर्त, पैरों,
को जमाना ही पड़ा था,
पत्थरों से पांव के,
छाले छिलाना ही पड़ा था,
घास मखमल सी जहाँ थी,
मन गया था लोट सहसा,
थी घनी छाया जहाँ पर,
तन जुड़ाना ही पड़ा था.
पग परीक्षा, पग प्रलोभन,
जोर कमजोरी भरा तू,
इस तरफ दतना, उधर,
ढलना पड़ेगा ही मुसाफिर,
सांस चलती है तुझे,
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर.
सूर्य ने हँसना भुलाया,
चन्द्रमा ने मुस्कुराना,
और भूली यामिनी भी,
तारिकाओं को जगाना,
एक झोंके ने बुझाया,
हाथ का भी दीप लेकिन,
मत बना इसको पथिक तू,
बैठ जाने का बहाना.
एक कोने में ह्रदय के,
आग तेरे जल रही है,
देखने को जग तुझे,
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर,
सांस चलती है तुझे,
चलना पड़ेगा ही मुसाफिर.
👏
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