पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
पुस्तकों में है नहीं छापी गई इसकी कहानी हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की जबानी
अनगिनत राही गए इस राह से उनका पता क्या पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरों की निशानी
यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है खोल इसका अर्थ पंथी पंथ का अनुमान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
यह बुरा है या कि अच्छा व्यर्थ दिन इस पर बिताना अब असंभव छोड़ यह पथ दूसरे पर पग बढ़ाना
तू इसे अच्छा समझ यात्रा सरल इससे बनेगी सोच मत केवल तुझे ही यह पड़ा मन में बिठाना
हर सफल पंथी यही विश्वास ले इस पर बढ़ा है तू इसी पर आज अपने चित्त का अवधान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
है अनिश्चित किस जगह पर सरित गिरि गह्वर मिलेंगे है अनिश्चित किस जगह पर बाग वन सुंदर मिलेंगे
किस जगह यात्रा खतम हो जाएगी यह भी अनिश्चित है अनिश्चित कब सुमन कब कंटकों के शर मिलेंगे
कौन सहसा छू जाएँगे मिलेंगे कौन सहसा आ पड़े कुछ भी रुकेगा तू न ऐसी आन कर ले।
पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
A Great Poem by Dr. Harivansh Rai ji Bachchan
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 21 जुलाई 2018 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना 👌
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