लौट जाती है दुनिया गम हमारा देखकर.
जैसे लौट जाती हैं लेहरें किनारा देखकर.
तू कान्धा न देना मेरे जानाज़े को ऐ दोस्त.
कही फ़िर जिंदा न हो जाऊं तेरा सहारा देख कर.
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आप को भूल जाये
आप को भूल जाये वोह नज़र कहाँ से लाये.
किसी और को चाह लें वोह जिगर कहाँ से लाये.
नहीं रह सकते आप के बिना.
उफ़ भी न निकले वोः ज़हर कहाँ से लाये.
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मोहताज़
ईकरार में शब्दों की अहमियत नहीं होती,
दिल के जज्बातों की आवाज़ नहीं होती,
ऑंखें बयां कर देती है दिल की दास्ताँ,
मोहब्बत लफ्जों की मोहताज़ नहीं होती
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वक्त गुज़रता रहा पर साँसें थमी सी थी,
मुस्कुरा रहे थे हम, पर आँखों में नमी सी थी,
साथ हमारे ये जहाँ था सारा,
पर न जाने क्यूँ किसी की कमी सी थी....
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आंखों की जुबान वोः समझ नहीं पाते,
होठ मगर कुछ कह नहीं पाते,
अपनी बेबसी किस तरह कहे,
कोई है जिसके बिना हम रह नहीं पाते
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