Wednesday, January 7, 2009

sahara



सहारा

लौट जाती है दुनिया गम हमारा देखकर.

जैसे लौट जाती हैं लेहरें किनारा देखकर.

तू कान्धा देना मेरे जानाज़े को दोस्त.

कही फ़िर जिंदा हो जाऊं तेरा सहारा देख कर.
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आप को भूल जाये

आप को भूल जाये वोह नज़र कहाँ से लाये.

किसी और को चाह लें वोह जिगर कहाँ से लाये.

नहीं रह सकते आप के बिना.

उफ़ भी निकले वोः ज़हर कहाँ से लाये.
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मोहताज़

ईकरार में शब्दों की अहमियत नहीं होती,

दिल के जज्बातों की आवाज़ नहीं होती,

ऑंखें बयां कर देती है दिल की दास्ताँ,

मोहब्बत लफ्जों की मोहताज़ नहीं होती
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वक्त गुज़रता रहा पर साँसें थमी सी थी,
मुस्कुरा रहे थे हम, पर आँखों में नमी सी थी,

साथ हमारे ये जहाँ था सारा,
पर जाने क्यूँ किसी की कमी सी थी....
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आंखों की जुबान वोः समझ नहीं पाते,
होठ मगर कुछ कह नहीं पाते,

अपनी बेबसी किस तरह कहे,
कोई है जिसके बिना हम रह नहीं पाते

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